भजन : माया का मारीच चला
राजन महराज
राजन महराज
कंचन मृग बन कर आया
सिय का अपहरण कराने
माया का मारीच चला
माया पति को भटकाने
सीता बोली वो देखे
स्वामी जी मृग कंचन का ,
चरम मार कर लाये तो
होगा निशान इस वन का ,
सियमाया की माया का मृग
लगे राम मुस्काने
माया का मारीच चला
माया पति को भटकाने
माया सोना है आखिर उसके
आगे यह जगत खिलौना
कितने लोगो को जीवन भर
सोने दिया न सोना
राम चले सोने के पीछे
दर दर ठोकर खाने
माया का मारीच चला
माया पति को भटकाने
मायापति को जीवन में
दर दर भटकाई माया
इसलिए जीवन में पड़े न
माया की कही छाया
राही नचा रहा जो जग को
माया चली नचाने
माया का मारीच चला
माया पति को भटकाने
कंचन मृग बन कर आया
सिय का अपहरण कराने
माया का मारीच चला
माया पति को भटकाने
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