Lyrics : अवध नगरिया से चलली बरतिया हे सुहावन लागे
अवध नगरिया से चलली बरतिया
हे सुहावन लागे
जनक नगरीया भइले शोर
हे सुहावन लागे
सब देवतन मिलि चलले बर अतिया
हे सुहावन लागे
बजवा बजेला घनघोर
हे सुहावन लागे
बजवा के शब्द हुलसे मोरी छतिया
हे सुहावन लागे
चहु दिस भइल बा अजोर
हे सुहावन लागे
कहत र रसिक जन , दूल्हा के सुरतिया
हे सुहावन लागे
सुफल मनोरथ भइले मोर
हे सुहावन लागे
अवध नगरिया से चलली बरतिया
हे सुहावन लागे
जनक नगरीया भइले शोर
हे सुहावन लागे