सबसे ऊँची प्रेम सगाई Bhajan Lyrics by Prembhushan ji maharaj

भजन : सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

श्री प्रेमभूषण जी महराज 

Lyrics 


सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

दुर्योधन की मेवा त्यागे 
साग बिदुर घर खाई 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

जूठे फल सबरी के खाये 
बहुबिध स्वाद बताई 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

प्रेम के वश नृप सेवा किन्ही 
आप बने हरि नाइ 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

राज सुयज्ञ युधिष्ठिर कीन्हो 
काम जूठ उठाई 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

प्रेम के वश पार्थ रथ हाक्यो 
भूल गए ठकुराई 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

ऐसी प्रीती बढ़ी वृन्दावन 
गोपियन नाच नचाई 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

सूर्य कोर तेहि ला अपनाही 
कहा लगी कर्म बढ़ाई 
सबसे ऊँची प्रेम सगाई 

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